प्रसून शुक्ला
लोगों ने मोदी को भारत का भाग्य विधाता चुन लिया. मोदी को ऐसा बहुमत दिया है कि कोई उनसे काम पर रत्ती भर भी अंकुश नहीं लगा सके. इसके पीछे लोगों का मोदी को लेकर विश्वास है. लेकिन सवाल यही है कि इस भरोसे की नींव में कौन से तत्व हैं ? जिसे कांग्रेस का नेतृत्व दूसरी बार भी समझने में नाकाम रहा है.
जीत में सबसे महत्वपूर्ण तत्व
एक लंबी मुहिम का नतीजा है ये जीत. इस विजय का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है हिंदुत्व. जिसके नायक का काम किया नरेंद्र मोदी ने. हिंदुत्व और मोदी एक दूसरे के पूरक का काम किया है. किसी भी विचारधारा को जिंदा मिसाल देना बेहद जरूरी है और इस मिसाल की सामाजिक स्वीकार्यता भी हो. इस जीत के पीछे दशकों से कांग्रेसी तुष्टिकरण नीतियों ने विजय को आधार देने का काम किया. जीत की पूरी व्याख्या करने से पहले कांग्रेसी शासनकाल में भारत के सामाजिक हालात को समझना होगा. कांग्रेस ने मान लिया था कि चुनावों में जो अक्रामक दिखे, उसे संतुष्ट करो और उसी के सहारे राज करो. सत्तर सालों से सामाजवाद की दुहाई दे-देकर हिंदुओं का दुहा गया. कांग्रेस को अपने कोर वोट बैंक में बड़ा भरोसा था जिसमें ब्राह्मण, मुस्लिम और दलित शामिल रहें. वोट बैंक के चक्कर में कांग्रेस ने हिंदु का मतलब केवल ब्राह्मण समझ लिया, मुस्लिमों को एक वोट बैंक समझा वो भी इस तथ्य के बावजूद कि पूरी दुनिया में मुस्लिमों के कई पंथ-सम्प्रदाय आपस में ही खूनी संघर्ष में जूझ रहे हैं, उनकी औरतें सबसे ज्यादा अपने परिवार में ही धर्म की आड़ लेकर प्रताड़ित की जाती रही हैं, और तो और सभी दलित जातियों को भी एक ही माना. जबकि जमीनी हालात लगातार बदल रहे. कभी शोषण का शिकार चमार जाति मौजूदा समय में दलितों में सबसे ताकतवर जाति के तौर पर सामने आई है. ठीक वैसे ही जैसे ओबीसी में शामिल यादव और कुर्मी को आज की तारीख में किसी भी क्षेत्र में पिछड़ा नहीं कहा जा सकता. सत्ता की होड़ ऐसी रही है अन्य जातियों ने अपनी राजनीतिक पहचान तक खो दी थी. जिसे बीजेपी ने 2013-14 से ही सत्ता समीकरण को दुरूस्त करने के लिए साधा. जिसकी परिणाम दो बार लोकसभा नतीजों में दिखा.
संघ की भूमिका
समाजवाद की सोच कांग्रेसी नेताओं की क्षुद्र मानसिकता, लालच और अहंकार की भेंट चढ़ने लगा. ठोस जमीनी हकीकत की अनदेखी करने की कांग्रेसी कमजोरी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आजादी से 25 साल पहले ही भांप लिया था. जिसके चलते संघ ने व्यक्ति निर्माण को राष्ट्र निर्माण के मुहिम से जोड़ दिया. जैसे जैसे राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण होता गया, कांग्रेस की नींव दरकती गई. ये सब हो रहा था हिंदुस्तान के गौरवशाली इतिहास की परंपरा को लोगों के दिलों में लगातार जिंदा रखकर. नींव का काम किया हिंदुत्व ने. समाज से जोड़ने के लिए अंत्योदय का सहारा लिया गया यानि अंतिम पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति को महत्वपूर्ण मानकर विकास की योजनाओं का लाभ दिलाना. राजनीतिक सत्ता के बिना भी संघ अपने संगठन के जरिए लोगों तक लाभ पहुंचाता रहा. ऐसी पहल सत्ताधारी दल की उस सोच से भिन्न है जहां राजनीतिक बुद्धिजीवियों ने मान लिया कि किसी भी राजनीतिक दल का पहला उद्देश्य राजनीतिक सत्ता हासिल करना है. उसके बाद ही सामाजिक बदलावों को धरातल पर उतारा जा सकता है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने शाखा के जरिए अपने शुरुआती समय से ही व्यक्ति निर्माण पर विशेष बल देता है. अच्छे कार्यों के निष्पादन के लिए सत्ता में होना जरूरी नहीं मानता है. देश के महापुरूषों जैसे छत्रपति शिवाजी और सिख गुरु तेगबहादुर के त्याग और बलिदान के किस्सों के जरिए विपरीत परिस्थितियों में भी उच्च मानवीय मूल्यों का प्रदर्शन करते रहने के लिए प्रेरित करता है. शाखा के जरिए ऐसे कार्यों के लिए सहयोगियों की कमी भी कभी नहीं खलती है. 95 साल की आयु पूरी कर रहा आरएसएस के अथक प्रयासों के माध्यम से बीजेपी को वो संगठन मिला, जिसके स्वयंसेवक बिना वेतन बिना राजनीतिक लाभ की सोच लिए निस्वार्थ भाव से राष्ट्रनिर्माण में लोगों की भागीदारी तय करने के लिए समाज में कार्य करते रहे. ये संघ ही है जो बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को भी पथ-भ्रष्ट नहीं होने देती.
कांग्रेस के सामने विकल्प क्या
पहले यह समझना होगा कि कांग्रेस क्यों जरूरी है? क्षेत्रीय दल कभी भी भारत की अस्मिता को एक राष्ट्र के तौर पर, एक लोकतांत्रिक गणराज्य के तौर पर संवर्धन नहीं कर सकते. इसके पीछे मंशा से ज्यादा क्षेत्रीय दलों की राजनीतिक पहल करने की लक्ष्मण रेखा का भी हाथ रहता है. इसीलिए एक मजबूत विपक्ष जरुरी है. कांग्रेसी समाजवाद को मृत विचारधारा मान लेना किसी भी राजनीतिक दल के लिए एक बड़ी भूल होगी. कांग्रेस को अपनी विचारधारा को सामाजिक आंदोलन का रूप देना होगा. समाजवाद और अंत्योदय की धारणा में मूलभूत अंतर है. लेकिन दोनों ही विचारधाराओं का उद्देश्य संपूर्ण समाज का कल्याण करना ही है. कांग्रेस को उस मूल भावना को अंगीकार करना होगा, जिसकी संस्कृति और सभ्यता को हम हिंदुत्व कहते हैं. जाति और धर्म को उसी तरह से देखना होगा जैसे एक राष्ट्र के तौर पर चीन का नजरिया है. आखिरी बात, इन बातों को आत्मसात करते हुए कांग्रेस को एक सामाजिक आंदोलन छेड़ना होगा, जिसका लक्ष्य लोगों का सर्वांगीण विकास हो. पर इतना ध्यान देना होगा कि लोगों को इसका उद्देश्य राजनीतिक सत्ता प्राप्त करना नहीं लगे.